मंगलवार, 25 मई 2010

आत्मा

!! अब कैसे नकारेंगे, भूत-प्रेत और आत्माओ के अस्तित्व को !!
पिछले कुछ दिनों से यहाँ ब्लागजगत में विभिन्न चिट्ठों पर भूत-प्रेत आधारित कईं लेख पढने को मिले । जहाँ अधिकांश लोग प्रेतात्माओं के अस्तित्व को स्वीकारते दिखाई दिए, तो वहीं ऎसे लोग भी हैं जो कि ऎसी बातों को दकियानूसी,मूर्खतापूर्ण विचार कह कर नकार देते हैं । उनकी दृ्ष्टि में आत्मा,परमात्मा जैसी चीजों के बारे में सोचना ही किसी मनोरोग से पीडित इन्सान के लक्षण हैं।
 देखा जाए तो सृ्ष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक चाहे विश्व की कोई भी सभ्यता,संस्कृ्ति रही हो, सब ने किसी न किसी रूप में भूत-प्रेत इत्यादि आत्माओं के अस्तित्व को स्वीकार किया है । आज भी पश्चिम के कई देशों में मृतात्मा को बुलाकर उनके साथ बातें करने जैसे प्रयोग अक्सर होते रहते है । इसलिए भूत-प्रेत की बातों को गुब्बारे की भान्ती सिरे से हवा में उड़ा देना भी ठीक नहीं है । मनुष्य की अनुभूति का दायरा अभी सीमित है । संसार के अनेकानेक रहस्य ऎसे हैं, जिनका पता लगाया जाना अभी बाकी है । इसी बज़ह से प्रेतात्माओं के अस्तित्व को नकारने की अपेक्षा यदि थोडा गंभीरतापूर्वक अन्वेषण किया जाए तो हो सकता है कि प्रकृ्ति के किन्ही गुह्यतम रहस्यों को उजागर किया जा सके ।
यदि अपनी बात करूं तो मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि मैं भूत प्रेत इत्यादि आत्माओं के अस्तित्व पर पूर्ण विश्वास रखता हूँ  । अब जो लोग इन सब बातों को सिर्फ मन की कल्पना या किसी प्रकार का मनोरोग मान बैठे हैं, अक्सर उन लोगों का ये तर्क होता है कि यदि भूत प्रेत इत्यादि आत्माएं हैं भी तो फिर वो हमें दिखाई क्यों नहीं पडती । चलिए इसके बारे में बात करते हैं,लेकिन इसे समझने के लिए हमें सबसे पहले स्थूल एवं सूक्ष्म के बारे में जानना होगा,उनकी प्रकृ्ति को समझना होगा ।

बैज्ञानिक दृष्टीकोण से ........
अपने आसपास हम लोग जिन स्थूल गतिमान वस्तुओं को देखते हैं, उनमें सर्वाधिक गति से चलने वाले हवाई जहाज की गति भी लगभग 1500/2000 मील प्रतिघंटा के करीब होगी । परन्तु अन्तरिक्ष यान की बात की जाए तो उसकी गति इससे भी कहीं अधिक है, जो कि एक घंटे में लगभग 17500 मील(शायद) की गति से चलता है । अब मनुष्य के अतिरिक्त प्रकृ्ति रचित पदार्थों की बात की जाए तो सूर्य, चन्द्रमा,पृ्थ्वी तारे इत्यादि विभिन्न आकाशीय पिंड हैं,जिनकी सर्वाधिक गति है ।  पृ्थ्वी तो अपनी धुरी पर 24 घंटे में महज 25000 मील की दूरी ही तय करती है परन्तु सूर्य जिसका अपना ब्यास ही 8,66000 मील है, जो कि पृ्थ्वी के ब्यास से 100 गुणा से भी अधिक है । उसे इस दूरी को लाँघने में प्राय: 25 दिन का समय लग जाता हैं । हाँ, सूर्य स्थूल होते हुए भी पृ्थ्वी की भान्ती सघन नहीं है ।
अब यदि इनकी तुलना शब्द (ध्वनि) से की जाए---जो कि इनसे सूक्ष्म है, तो उसकी गति इन सब से अधिक हैं। प्रकाश की गति शब्द से भी अधिक है,जो कि एक सैकिंड में 1,88000 मील की दूरी तय कर लेता है । प्रकाश से भी सूक्ष्म मन को माना जाए तो उसकी गति का तो कोई माप ही नहीं है । हम सिर्फ इतना ही जानते हैं कि मन की भी कोई गति होती है, जो कि एक क्षण में भूत-भविष्य की सभी सीमाएं लाँघ जाता है । अब यदि मन से आत्मा को ओर अधिक सूक्ष्म कहें तो उसकी कोई गति है या नहीं, यह भी बता पाने में हम लोग असमर्थ हैं ।
कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि ज्यों ज्यों हम स्थूल से सूक्ष्म तत्व की ओर बढते गए, त्यों-त्यों गति और शक्ति में भी वृ्द्धि होती चली गई ।
ऎसा नहीं है कि आत्मा की कोई गति नहीं है । गति है, किन्तु जिस प्रकार अत्यंत गतिशील वस्तु हमारी स्थूल आँखों से चलायमान नहीं दिखाई देती, बल्कि स्थिर हो जाती है । ठीक उसी प्रकार से आत्मा की भी गति है, किन्तु जिसे नापने का हमारे पास कोई पैमाना नहीं है ।
अत्यंत गतिशील वस्तु हमें स्थिर भी इसलिए दिखाई पडती है, कि हमारी आँख उस गति का अनुसरण नहीं कर पाती । हाँ, आजकल ऎसे कैमरे अवश्य निर्मित हो गए हैं, जो कि तेज गति से चलती वस्तु की भी तस्वीर खीँच सकते हैं, लेकिन वो भी एक सीमा तक ही ।  किसी सूक्ष्म वस्तु के मापन के लिए भी उतना ही सूक्ष्म यन्त्र चाहिए होता है,जितनी कि वस्तु सूक्ष्म है ।
वैज्ञानिक ये बता सकते हैं कि पृ्थ्वी का कितना वजन है, केवल पृ्थ्वी ही क्यों सूर्य, चन्द्र इत्यादि आकाशीय पिंडों के घनत्व,द्रव्यमान, गति इत्यादि के बारे में भी काफी अधिक जान चुके हैं । लेकिन ये नहीं बता सकते कि सूक्ष्माणु का आकार कितना है, उसमें कितना भार है? उसकी गति कितनी है?  । क्यों नहीं बता सकते; क्यों कि हमारे पास उसके माप-तौल का कोई यन्त्र नहीं है । तो फिर मन और आत्मा तो अणु से भी सूक्ष्म ठहरे । उनका मापन, दृ्श्यावलोकन कैसे हो ? कुछ भी हो विज्ञान की ये विवशता आत्मा जैसे सूक्ष्म तत्व के महत्व को ही प्रमाणित करती है ।
जल की शक्ति से हम सभी लोग भली भान्ती परिचित हैं । परन्तु जब यही जल वाष्प रूप में परिवर्तित हो कर सूक्ष्म रूप में आ जाता है तो उसकी शक्ति भी कईं गुणा बढ जाती है । यही भाप यदि ओर भी सूक्ष्म हो जाए तो उसकी शक्ति भी उत्तरोतर प्रचंड वेगदायक होती जाएगी ।  
हमें विज्ञान बताता है कि सूक्ष्म की गति और शक्ति स्थूल से अनेक गुणा अधिक है । और यदि हम भूत-प्रेत आदि किसी आत्मा की बात करें जो कि सूक्ष्म से भी कहीं सूक्ष्म है तो तर्क से यह भी माना जा सकता है कि इन सूक्ष्म तत्वों की गति और शक्ति भी अनन्त है--------और आयु भी ।   

पृ्थ्वी, जल,अग्नि,वायु,आकाश नामक पाचों तत्वों में से किसी की भी मृ्त्यु नहीं होती, इनमें से कोई तत्व नष्ट नहीं होता। सिर्फ इनका रूप परिवर्तन ही होता है । तो क्या यह न माने कि मनुष्य की मृ्त्यु भी उसका अन्त नहीं है,क्यों कि मनुष्य शरीर भी तो इन्ही पंच तत्वों से ही बना है । जब उपरोक्त पाचों तत्वों में से किसी भी तत्व का अन्त नहीं हो रहा तो मनुष्य शरीर का अन्त मनुष्य का अन्त कैसे ?
विज्ञान कहता हैं कि हमारा जो ये स्थूल शरीर है,वास्तव में यह असंख्य परमाणुओं का एक पुंज है । ओर प्रत्येक परमाणु के भीतर एक इलैक्ट्रान और एक प्रोटोन होता है, जो कि भिन्न दिशाओं में करोडों चक्कर प्रतिक्षण लगाते रहते हैं । अब ये चक्कर क्यों लगाते रहते हैं , ये नहीं पता ।

जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो क्या उसका सचमुच अन्त हो जाता है? अब शरीर मर गया, गल गया, जल गया, डूब गया, तो भी इन परमाणुओं का नाश तो नहीं हुआ । जिन अणुओं,परमाणुओं के समूह से वह बना था, वो तो उसके मरने के बाद भी नष्ट नहीं होते, उसी तरह चक्कर काटते रहते हैं । जो बुनियादी वस्तु है वो तो फिर भी विद्यमान है। जो परमाणु पुंज था,  वही मात्र बिखर गया । हमारे पास इन सब चीजों को देखने का कोई साधन नहीं इसलिए हम ऎसा मानते हैं कि अमुक व्यक्ति मर गया । पर हमें क्या खबर कि आगे चलकर क्या हुआ? जल से वाष्प बना तो क्या हुआ ?----एक तो वाष्प रूप में परिवर्तित होने से उसकी गति और शक्ति दोनों ही कईं गुणा बढ गई, दूसरे आखिर में वो दुबारा से जल ही बना । ठीक इसी प्रकार से मरने के बाद जो शेष रह जाता है, जिसे कि हम लोग आत्मा के नाम से जानते हैं------उसकी गति एवं शक्ति भी अनन्त गुणा बढ जाती हैं । इन्ही आत्माओं को चाहे तो हम लोग भूत कह लें या प्रेत, जिनकी गति और शक्ति भी जीवित इन्सान के भीतर मौजूद आत्मा से कहीं अधिक बढ चुकी होती है । किन्तु ये आत्माएँ भी अस्तित्व के रहते हुए शरीर साधन के बिना कुछ अभिव्यक्ति प्रकट नहीं कर पातीं । हाँ, भूत-प्रेत के रूप में उनके सूक्ष्म शरीर की हरकतें यदा-कदा अवश्य प्रकाश में आ जाती हैं । 
अणु,परमाणु से भी सूक्ष्म जो ये शक्ति (आत्मा) है, माना कि उसका हुलिया,उसकी आकृ्ति,प्रकृ्ति के बारे में विज्ञान अभी नहीं बता सकता । परन्तु यदि सूक्ष्मतम का साक्षात्कार करने में हम लोग विवश हैं तो क्या यह मान लिया जाए कि एक सीमा से आगे रास्ते बन्द हो चुके हैं और सूक्ष्मतर या सूक्ष्मतम जैसी कोई चीज है ही नहीं । परन्तु सत्य तो ये है कि इस सूक्ष्मीकरण का कोई अन्त नहीं, सूक्ष्मतम के बाद भी रास्ता आगे बढता ही चला जाता है, जिस पर कि हमारी कल्पनाशक्ति भी दौडने में असमर्थता प्रकट कर देती है । हम विवश हैं, इससे सूक्ष्मतम असिद्ध नहीं होता बल्कि हमारी निरीहता ही प्रकट होती है ।
सचमुच कितने लाचार हैं हम उस सृ्ष्टिकर्ता के आगे............. पं. डी. के. शर्मा

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