गुरुवार, 27 मई 2010

साधना की शक्ति

!! साधना की शक्ति !! 

कहते हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। प्रत्येक युग में मनुष्य नें अपनी आवश्यकताओं तथा जिज्ञासा को आधार बनाकर अध्ययन और नवीन खोजें की हैं। इन सभी कार्यों को करने के लिए चाहिए---साधना। किसी भी मन चाहे उपयोगी कार्य को पूरा कर लेने की क्षमता प्राप्त कर लेना ही सिद्धि कहलाता है। सिद्धि शब्द अकेला नहीं है,साधना शब्द इसके साथ ही अभिन्न रूप से जुडा हुआ है। सभी प्रकार की सिद्धियाँ साधनाओं का ही परिणाम हैं। बिना साधना के किसी प्रकार की सिद्धि सम्भव नहीं। सिद्धियाँ और सिद्ध पुरूष दोनों ही ठोस वास्तविकता है। इस संसार में सभी युगों में सिद्ध पुरूष हुए हैं। वे प्राचीन काल में भी थे और वर्तमान काल में भी हैं। सिद्ध पुरूषों की कृ्पा तथा प्रेरणा से प्राचीनकाल में भी चमत्कारी घटनाएं घटती थी और वर्तमान में भी घटती हैं। उस युग में इस प्रकार के प्रसंगों की बहुलता थी तो आधुनिक काल में अभाव है लेकिन शून्यता की स्थिति फिर भी नहीं है। सिद्ध पुरूष हैं भले ही उनकी संख्या कम हो। इसका कारण मात्र इतना है कि वर्तमान युग भौतिकवादी,कालवादी,यान्त्रिक और मात्र बुद्धिवादी है जब कि प्राचीन युग आज की भांती न तो भौतिकवादी था,न कालवादी, न यान्त्रिक ओर न ही वर्तमान जैसी आत्मशक्ति का अभाव था। आज के युग में जब कि विज्ञान की सार्वभौम सत्ता स्थापित हो चुकी है फिर भी विश्व के सभी राष्ट्र सिद्धियों,सिद्धपुरूषों,पराभौतिक शक्तियों एवं ईश्वरीय विधान में पूर्ण विश्वास रखते हैं । अनेकों ऎसे रहस्य जिनका अब तक वैज्ञानिक विश्लेषण संभव नहीं हो सका है,फिर भी उनके प्रति सामान्य जन से लेकर वैज्ञानिकों तक आस्था एवं विश्वास का वातावरण बना हुआ है। इसका कारण सिद्धियों की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता ही है।
कभी कभी किसी व्यक्ति को जन्मजात ही बिना किसी प्रयास या साधना के ही सिद्ध पुरूष की क्षमता से सम्पन देखा गया है। इस विषय में आधुनिक विज्ञान नें पूर्णत: चुप्पी साध रखी है यधपि विश्लेषण प्रयासों में इन्होने कोई कमी नहीं रखी। इस विषय में इजराइल के एक युवक यूरी गैलर का उदाहरण यहाँ देना चाहूँगा । किसी भी धातु की बनी छड,चम्मच,चाबी या अन्य किसी भी प्रकार की वस्तु पर वह जैसे ही दृ्ष्टिपात करता है,दृ्ष्टिकेन्द्र्ति वे वस्तुएं स्वयं ही मुडने लगती हैं। संसार की अनेक प्रयोगशालाओं में गैलर की इस क्षमता को जाँचा परखा गया लेकिन वैज्ञानिक उसकी इस शक्ति का रहस्य समझ सकने में असमर्थ हैं।
अमेरिकी अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों नें "निटीमोल" नामक मिश्रित धातु का आविष्कार उपग्रहों की एन्टीना बनाने के लिए किया था । इस मिश्र धातु की सबसे बडी विशेषता है कि इससे  बनी कोई भी वस्तु को चाहे जितना मर्जी तोडा,मोडा या मरोडा जाए किन्तु वो पुन: अपने उसी रूप में आ जाती है। जब इसके आविष्कारक एल्डन वायर्ड ने निटीमोल का तार अपने हाथ में लेकर इसकी विशेषताएं यूरी गैलर को समझाई तो गैलर को भी लगा कि इस पर उसका दृ्ष्टिप्रभाव काम नहीं करेगा। लेकिन आश्चर्य कि तार पर गैलर के दृ्ष्टि केन्द्रित करते ही उसमें बल पडने लगे और वह ऎंठने लगा। थोडी देर में ही देखा गया कि तार में बल पडने से एक स्थान पर गूमड सा उभर आया है। वैज्ञानिकों नें निटिमोल की उस तार में पडे गूमड को ठीक करने में ऎडी चोटी का जोर लगा डाला लेकिन उन्हे लेशमात्र भी सफलता नहीं मिली। इस प्रकार निटीमोल की विशेषता को एक चुनौती देने और उसके गुणधर्म को असत्य प्रमाणित करने वाली स्थिति से वैज्ञानिक आज तक आश्चर्यचकित हैं। है किसी पाश्चात्य बुद्धि के पास इस बात का जवाब कि केवल दृ्ष्टिपात से ही किसी पदार्थ के गुणधर्म कैसे बदल गये?
प्राचीनकाल के भारतीय यौगियों के ऎसे और इनसे भी बडे प्रदर्शनों को आज हम विश्वसनीय नहीं मानते किन्तु वर्तमान युग के इन चमत्कारों को हम क्या कहेंगे, जिनकी व्याख्या विज्ञान भी नहीं कर पा रहा है।
इस प्रकार की अनेक सिद्धियाँ हैं जो मनुष्य अपनी साधना तथा पूर्वजन्म के संस्कारों के बल पर प्राप्त कर सकता है। विश्वास,पूर्ण एकाग्रता और प्रयास ऎसी शक्तियाँ हैं जिनके बल पर असंभव को भी संभव किया जा सकता है।..................पं. डी. के. शर्मा

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