सोमवार, 31 मई 2010

वैज्ञानिक परिकल्पनाएं

भविष्य का सच आज कि परिकल्पना 
परिकल्पनाएं आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का आधार हैं. आज का विज्ञान जिन सिद्धांतों पर टिका हुआ है वे सिद्धांत प्रारम्भ में परिकल्पनाओं के रूप में जन्मे थे.

पहली परिकल्पना समय (टाइम) के बारे में है. कुछ विज्ञान कथाओं में टाइम मशीन की संकल्पना मिलती है. जिसमें एक मशीन के सहारे कोई व्यक्ति भूत या भविष्य में पहुँच जाता है. वहां वह उन घटनाओं का अंग बन जाता है, जो उस समय घटित हो रही हैं. प्रश्न उठता है क्या इस तरह की मशीन बनाना संभव है? इसके लिए एक और प्रश्न पर विचार करना होगा. मान लिया कोई व्यक्ति भूतकाल में जाकर अपने दादा की हत्या कर देता है. स्पष्ट है की अब उसका पैदा होना भी असंभव है. लेकिन अगर वह पैदा नहीं होगा तो वर्तमान में उसका अस्तित्व भी नहीं रह जायेगा. यह विरोधाभास सिद्ध करता है की टाइम मशीन का बनना असंभव है. लेकिन अगर हम और गहराई से विचार करें? आइंस्टाइन के द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण के अनुसार पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है.(E=mc2) पदार्थ क्या है? स्पेस में पदार्थ वह आकृति है जो चार विमाओं द्वारा निर्धारित होती है. ये चार विमायें हैं, लम्बाई, चौडाई, गहराई और समय.

दूसरे शब्दों में यदि कोई वस्तु चार विमायें रखती है तो उसे ऊर्जा में बदला जा सकता है. अगर इस ऊर्जा में थोडी कमी करके या बढोत्तरी करके वापस पदार्थ में बदला जाए तो तो उत्पन्न पदार्थ का द्रव्यमान मूल पदार्थ से कम या ज़्यादा होगा. इसी दिशा में यदि विचारों को बढाया जाए तो टाइम मशीन का बनना संभव है. इसके लिए समय को ऊर्जा में बदल कर उस ऊर्जा में कमी या बढोत्तरी करनी होगी. और फ़िर उसे वापस समय में परिवर्तित करना पड़ेगा. उस वक्त वह समय भूत या भविष्य में परिवर्तित हो जायेगा. लेकिन समस्या यह है की कोई वस्तु तभी ऊर्जा में बदल सकती है जब उसमें चारों विमायें हों. जबकि समय मात्र एक विमा है. यहाँ पर यह निष्कर्ष निकल सकता है की समय को वास्तविक ऊर्जा में तो नहीं बदला जा सकता, हाँ काल्पनिक ऊर्जा में ज़रूर बदला जा सकता है. और इस तरह भूत या भविष्य में पहुँचा जा सकता है. लेकिन ठीक उसी प्रकार मानो वहां पहुँचने वाला व्यक्ति कोई सपना देख रहा हो. सपने में ही वह व्यक्ति भूत या भविष्य की घटनाएं देख पायेगा लेकिन उनमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर पायेगा. इस प्रकार उपरोक्त विरोधाभास दूर हो जाता है.

दूसरी परिकल्पना,  जो एंटी मैटर अर्थात प्रति पदार्थ से सम्बंधित हैं. प्रति कणों की खोज बहुत पहले ही हो चुकी है. और अब तक पाजिट्रान, एंटी प्रोटोन जैसे अनेक प्रतिकण खोजे जा चुके हैं. प्रकृति के प्रत्येक मूल कण का एक प्रतिकण अवश्य है. जो संपर्क में आने पर एक दूसरे को नष्ट कर डालते हैं. अगर मूल कणों का प्रति कण अस्तित्वा में है तो प्रति परमाणु, प्रति अणु और फिर प्रति पदार्थ (एंटी मैटर) भी अस्तित्व में होना चाहिये. लेकिन हम अभी तक कहीं भी प्रति पदार्थ के दर्शन नहीं कर सके हैं. क्यों? इसलिए क्योंकि ब्रह्माण्ड में समस्त स्थानों पर पदार्थ का फैलाव है. अगर इस बीच में कोई प्रति पदार्थ अस्तित्व में आएगा तो पदार्थ से टकराकर नष्ट हो जायेगा. इसलिए कोई ऐसा अलग दायेरा होना चाहिये जहाँ केवल प्रति पदार्थ हो, पदार्थ न हो. प्रश्न उठता है वह दायेरा, वह क्षेत्र कहाँ हो सकता है जहाँ प्रति पदार्थ यानी एंटी मैटर हो लेकिन पदार्थ (मैटर) न हो? स्पष्ट है की वह क्षेत्र एक ऐसा पूरक क्षेत्र (complementary Area) होगा जो हमारे इस अन्तरिक्ष से पूरी तरह अलग होगा. अब अन्तरिक्ष क्या है? चार विमाओं लम्बाई, चौडाई, और समय से निरूपित बिन्दुओं का समूह. इन्हीं बिन्दुओं द्बारा हम किसी पदार्थ और उसकी स्थिति को दर्शाते हैं. यहाँ पर हमें निर्देशांक ज्यामिति द्बारा लम्बाई, चौडाई और ऊंचाई तीनों के दो भाग मिलते हैं. धनात्मक (Positive) और ऋणात्मक (Negative) भाग. लेकिन आश्चर्य की बात है की समय का कोई नेगेटिव नहीं मिलता. तो क्या वास्तव में निगेटिव टाइम का कोई अस्तित्व नहीं है? लेकिन यह कैसे संभव है? जबकि ब्रह्माण्ड में हर चीज़ का एक ऋणात्मक भाग अस्तित्व में है. स्पष्ट है की ब्रह्माण्ड में एक ऐसा क्षेत्र हो सकता है जहाँ निगेटिव टाइम अस्तित्व में है. अगर ऐसा क्षेत्र है तो वह इस प्रकार का पूरक क्षेत्र होगा जहाँ तक हमारी या किसी अन्य पदार्थ की पहुँच असंभव होगी. तो फिर वहां क्या होगा? क्या प्रति पदार्थ वहीँ होगा? अगर ऐसा संभव है तो हमारे इस प्रश्न का जवाब मिल गया कि ब्रह्माण्ड में प्रति पदार्थ मौजूद है. जो एक अलग ही क्षेत्र में है. और वहां का समय हमारे समय का ऋणात्मक है. इस कारण इन दो क्षेत्रों का मिलना असंभव है. और इस तरह पदार्थ तथा प्रति पदार्थ अपना अलग अलग अस्तित्व रखते हैं.

आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे शक्तिशली सोफ्ट एक्स रे लेजर की मदद से पारदर्शी एल्यूमिनियम बनाने में सफलता प्राप्त कर ली हैं अब तक ये पारदर्शी एल्यूमिनियम सिर्फ कल्पना मात्र थी जिसका स्टार ट्रेक iv नामक फिल्म में प्रयोग किया गया है। एल्यूमिनियम की ये नई अवस्था खगोलिकी व नाभिकीय संगलन (फ्यूजन) के क्षेत्र नई संभावनायें जगाती है।

अगर मैं कहूं कि कोई एक एल्यूमिनियम शीट के आर-पार देख सकता है तो आप मानेंगे नहीं पर यह सच है, ये कारनामा किया है आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने। नेचर फिजिक्स पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर जस्टिन वार्क और उनके सहयोगियो ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली सॉफ्ट एक्स रे फ्लैश लेजर की की शक्तिशाली बीम को जब एल्यूमिनियम सेम्पल में एक मानव बाल के बीसवें हिस्से के बराबर के बिन्दु पर फोक्स किया तो उन्होने पाया कि 40 फेमेटो सेकेण्ड के अति सूक्ष्म समय के लिये ऐसा लगा कि उस स्थान की एल्यूमिनियम अद्श्य हो गई हो। डा वार्क के अनुसार फ्लेश लेजर से निकली शक्तिशाली लेजर किरण पुज ने एल्यूमिनियम के हर परमाणु से एक इलेक्ट्रान बाहर निकाल दिया जिसके फलस्वरूप एल्यूमिनियम की मणिभ (क्रिस्टल) संचरना में तो कोई परिवर्तन नहीं आया पर वह अद्धश्य हो गई। वह अदृश्य इस लिये हुई थी क्योकि वह पारदर्शी हो गई थी।

ज्ञातव्य है कि हैमबर्ग जर्मनी में ये स्थापित ये फ्लैश लेजर, जिसका प्रयोग इस अनुसंधान में किया गया था, अभी तक दुनिया को सबसे तीव्र लेजर है। लेसर उपकरण से निकलने वाला किरण पुंज किसी बड़े शहर के लिये उपयुक्त पावर सप्लाई प्लांट से उत्पन्न विद्युत ऊर्जा से भी ज्यादा शक्तिशाली होता है।

प्रोफेसर जस्टिन वार्क ने बताया, "ये पदार्थ की एकदम नई अवस्था है जिसके बारे में अब तक किसी को कुछ भी पता नहीं है। पदार्थ की इस अवस्था के अध्ययन से हमें ये पता लगा सकेगा कि छोटे-छोटे तारों के निर्माण के समय क्या हुआ होगा और इससे हमें एक दिन नाभिकीय संगलन को समझने व उसका प्रयोग करने में और  अधिक सहायता मिल सकेगी।"
"यद्यपि ये स्थिति करीब 40 मेटो सेकेन्ड के अल्पकाल के लिये ही उत्पन्न हुई थी पर  इससे इतना तो निश्चित हो ही जाता है कि हमने एल्यूमिनियम की नई अवस्था को उत्पन्न किया है

ये थीं कुछ वैज्ञानिक परिकल्पनाएं जो यदि सत्य सिद्ध हो जाएँ तो भौतिक विज्ञान की दुनिया को नई दिशाएँ दे सकती हैं.

आभारः हिन्दी साइंस फिक्शन

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