रविवार, 30 मई 2010

ऑपरेशन पुनर्जन्म

"डॉ. किरणमाली, अख़बार की सुर्खियों को आपने देखा होगा ?" डॉ मार्तंड विडियोफ़ोन पर बोले।
''हाँ, डॉ मार्तंड हमारा प्रयोग सफल रहा। "किरणमाली ने विडियो फ़ोन पर जवाब दिया।
"यह पुनर्जन्म नहीं है, लेकिन लोग तो इसे पुनर्जन्म ही समझेंगे"
"हाँ, यह तो होना ही था।"
"डॉ. किरणमाली, आखिर पुनर्जन्म और इस घटना में अंतर ही क्या है? ऊपरी तौर पर तो यह पुनर्जन्म की घटना ही दिखाई पड़ती है।"
"हाँ, मार्तंड, पुनर्जन्म की यह घटना स्वाभाविक दिखाई पड़े। यही सही होगा, इससे हमारा प्रयोग गुप्त रह पायेगा।"
"डॉ किरण माली, मैं उस बच्चे को देखने के लिये जा रहा हूँ जिसका पुनर्जन्म हुआ।"
"डॉ. मार्तंड अवश्य जाइये। लौटते वक्त आप उससे हुई मुलाकात का आँखों देखा हाल अवश्य सुनाइए। "
"हाँ, अवश्य। "डॉ. मार्तंड ने विडियो फ़ोन बंद किया तथा अपनी सौर कार में उस शहर की ओर रवाना हो गये जहाँ पुनर्जन्म हुआ था। रास्ते भर डॉ. मार्तंड यही सोंच रहे थे की,किस तरह डॉ. किरणमाली ने तथा उन्होंने एक महान प्रोजेक्ट अपने हाथ में लिया था। प्रारंभ में उन्हें एक क्षीण आशा थी कि वे सफल होंगे। एक महान प्रोजेक्ट से जुडी थी मानवता की भलाई ... । यह खोज विज्ञान जगत में मील का पत्थर साबित होगी।
आप सोच रहे होंगे कि वह प्रोजेक्ट क्या हो सकता है? कैसे मानवता की भलाई इसके साथ जुडी है? कैसे यह एक आश्चर्यजनक खोज है? तो मैं आपको बता ही दूँ की इस प्रोजेक्ट से जुडी है एक महान वैज्ञानिक की खोज ... वह महान वैज्ञानिक थे डॉ. विवस्वान।। एक विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक... एक ऐसी प्रज्ञा जो कई सालों बाद जन्म लेती है ... शायद सदियों बाद ... लेकिन यह मानव जाति का दुर्भाग्य ही कहलायेगा की उनका प्लेन क्रैश हो चुका था। और वे जिंदगी की अंतिम घडियां गिन रहे थे। चिकत्सिकों के द्वारा उन्हें बचाने के भरसक प्रयत्न चल रहे थे। लेकिन उनका बचना नामुनकिन था। एक महान वैज्ञानिक इस संसार से विदा ले रहा था। तो क्या उसकी खोज अधूरी रह जायेगी? सभी वैज्ञानिक हताश थे। अचानक
किरणमाली के मस्तिष्क में एक विचार आया। उन्होंने डॉ. मार्तंड का सहयोग लिया। फिर एक प्रोजेक्ट की रचना हुई। और फिर उन्होंने वह हैरतअंगेज कारनामा कर दिखाया जिसके बारे में दुनियां सपने में भी नहीं सोच सकती थी।ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक विवस्वान एक महान खोज में जुटे हुए थे और वह खोज थी मानवता की जरावस्था से मुक्ति। व्यक्ति यदि वृद्ध नहीं होगा तो वह सौ वर्ष की जगह शायद वह दो सौ वर्ष तक रह सकेगा। उम्र के बढ़ने से उसके अनुसन्धान या अन्य कार्य करने का दायरा बढ़ जायेगा। धरती से वृद्ध व्यक्तियों का लोप पूरी तरह हो जायेगा। इससे मानव जाति अत्यन्त सुन्दर तथा ओजपूर्ण दिखाई पड़ेगी। पृथ्वी पर बुद्धिमत्ता बढ़ने से हो सकता है हम भी ब्रह्माण्ड के उच्च  बुद्धि युक्त प्राणी कहलाने लगे। जरावस्ता का लोप मानव जाति के लिये वरदान साबित होगा। कौन चाहेगा कि उसके चहरे पर झुर्रियां पड़े या उसकी शक्ति क्षीण हो। वैज्ञानिक विवस्वान पूरी तन्मयता के साथ इस खोज में जुटे हुए थे। सारे विश्व कि निगाहें उनकी खोज पर टिकी हुई थी। उनकी प्रयोग शाला विश्व की किसी भी प्रयोगशाला से काम नहीं थी। सुपरकम्पूटर तथा अत्याधुनिक शल्यउपकरण। साथ में थे संवेदनशील रोबोट। प्रयोगशाला में कल्चर्ड जीवाणु से लेकर वनमानुष तक सभी कुछ थे।

डॉ. विवस्वान प्रयोगशाला के कई जंतुओं पर प्रयोग कर चुके थे। लेकिन उन्हें आंशिक सफलता ही प्राप्त हुई थी। डॉ. विवस्वान इस बात से आशान्वित थे कि वे एक दिन अवश्य सफल होंगे। कभी उन्हें लगता कि सफलता उनके मुंह बाये खड़ी है। कभी लगता कि सफलता उनसे अभी कोसों दूर है। लेकिन वे हताश नहीं हुए। जब उन्हें लगता कि सफलता उनके निकट है तो वे फूले नहीं समाते। 

लेकिन दुर्भाग्य ने उनकी सफलता पर दस्तक दे दी। प्लेन क्रेश होने से उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी खोज अधूरी रह गयी। यह मानवता के लिये अपूर्णीय क्षति थी। आप सोच रहे होंगे कि उनकी हर चीज सुपर कंप्यूटर में अंकित हो चुकी होगी और उसका सहारा लेकर वैज्ञानिक आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन क्या मानव का स्थान सुपर कंप्यूटर ले सकता है ? सुपर कम्पूटर की भी एक सीमा होती है। वैज्ञानिक विवस्वान की हर बात तो फीड नहीं की जा सकती थी। उसमे भी शून्य से अनंत तक अनेक गैप होते हैं। माना की अन्य वैज्ञानिक डॉ विवस्वान की इस खोज को आगे बढायेंगे, लेकिन क्या वे सफल होंगे ? इस दिशा में प्रयत्न हुए सदी बीत गयी लेकिन क्या वे सफल हुए ? और फिर विवस्वान जैसी प्रज्ञा तो सदियों में ही जन्म लेती है। भला आइन्स्टीन क्या बार बार जन्म लेते हैं ?

डॉ. विवस्वान के निधन से सारे संसार में शोक की लहर फ़ैल गयी। भारत के दुःख का पारावार नहीं था। वैज्ञानिक विवस्वान के पार्थिव शरीर को जब भारत लाया गया तो डॉ. मार्तंड उनके अंतिम दर्शनों के लिये पहुंचे। उसी रात डॉ. मार्तंड के मस्तिष्क में एक विचित्र विचार आया। हाँ, यह विचार अनोखा था क्योंकि यह सोच से परे था और ऐसा करने का दुस्साहस भी किसी में नहीं था, डॉ. विवस्वान को जीवित रखा जा सकता है, लेकिन उनके शरीर के रूप में नहीं। एक अर्थ में उनकी मृत्यु हो गयी लेकिन दूसरे अर्थ में नहीं।

यह माना जाता है कि किसी की ह्रदय गति रुक जाये तो भी वह व्यक्ति जीवित रह सकता है। केवल ह्रदय ही क्यों, पूरा शरीर भी नष्ट हो जाये तो एक चीज अवश्य जीवित रह सकती है ... वह है मस्तिष्क। ह्रदय के मरने पर भी मस्तिष्क जीवित रह सकता है। हाँ,  इतना अवश्य है कि मस्तिष्क अधिक देर तक जीवित नहीं रहता। इसकी कोशिकाएं तेजी से मरने लगती है। डॉ. विवस्वान के साथ भी ऐसा ही हुआ। उनकी ह्रदय गति रुक चुकी थी लेकिन मस्तिष्क अभी जीवित था।

लेकिन डॉ. मार्तंड के दिमाग में एक अनोखा विचार था, कि वैज्ञानिक विवस्वान का ह्रदय मर चुका है लेकिन उनका मस्तिष्क अभी जीवित है वैज्ञानिक भाषा में कहें तो उनकी मृत्यु क्लीनिकली अभी नहीं हुई है भले ही वे आम जानता के लिये मृत हो चुके हो। वैज्ञानिक विवस्वान के मस्तिष्क का इस्तेमाल किया जा सकता है। कैसे? इसकी तस्वीर भी डॉ. मार्तंड के दिमाग में स्पष्ट हो गयी वैज्ञानिक विवस्वान को तो जीवित नहीं रखा जा सकता लेकिन उनकी स्मृति को तो जीवित रखा जा सकता है। और यदि उनकी स्मृति को जीवित रखा जा सकता है तो एक अर्थ में उन्हें ही जीवित रखा जा सकता है।
लेकिन विवस्वान के भौतिक शरीर में नहीं। उनकी स्मृति को स्थानांतरित करना होगा, किसी अन्य शरीर में। यानि डॉ. विवस्वान किसी दूसरे के शरीर में ही जीवित रह सकते हैं और यदि किसी अन्य के शरीर में भी उन्हें जीवित रखा जा सकता है तो इससे मानवता का बहुत भला होगा। डॉ. विवस्वान के सपने को साकार किया जा सकेगा। पृथ्वी को अन्ततः जरावस्था से निजात मिल जायेगी।

डॉ। मार्तंड जानते थे प्राणी की स्मृति भी अणुओं के रूप में होती है, और वह विलक्षण अणु है डी. एन. ए.। इसी से स्मृति आर. एन. ए. में स्थानांतरित होती है जो प्रोटीन में चली जाती है। कितना विलक्षण है यह डी. न. ए. का अणु। इसमें संचित है विवस्वान का स्मृति। स्मृति के इस विलक्षण अणु को उनके दक्ष हाथ बड़े आराम से डॉ. विवस्वान के मस्तिष्क से पृथक कर सकते है तथा दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में प्रत्यारोपित भी कर सकते हैं। इससे डॉ. विवास्मन की स्मृति किसी दूसरे व्यक्ति में स्थानांतरित हो जायेगी। जिससे वह व्यक्ति डॉ विवस्वान की तरह ही व्यवहार करने लगेगा। दूसरे शब्दों में वह खुद विवस्वान बन जायेगा। वह अपने आपको विवस्वान कहने लगेगा। फिर वह दिन दूर नहीं होगा जब वह वैज्ञानिक विवस्वान के सपनों को साकार कर सकेगा और मानवता को जरावस्था से निजात दिला सकेगा।

अब जबकि डॉ. मार्तंड के मस्तिष्क में अनोखा विचार उपजा तो उन्हें लगा की उनका एक एक पल कीमती है। ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ. विवस्वान के मस्तिष्क की कोशिकाएं हर पल क्षीण होती जा रही थी। डॉ. मार्तंड ने वीडियो फ़ोन पर डॉ. किरणमाली से बात की और इससे उपजा 'ऑपरेशन पुनर्जन्म '।

दोनों ने मिलकर यह निश्चय किया कि उनका प्रोजेक्ट गुप्त रहेगा। क्योंकि इस प्रयोग में शत प्रतिशत सफलता की कोई गारंटी नहीं है। प्रयोग की असफलता पर कई तरह के आरोप लग सकते थे। डॉ. मार्तंड तथा किरणमाली दोनों वैज्ञानिक विवस्वान के घनिष्ट मित्र थे। मृत्यु के दो दिन पश्चात् डॉ. विवस्वान का दह संस्कार करना तय किया गया। उनके पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु जनताके लिये अगला दिन निश्चित किया गया।

डॉ. मार्तंड तथा डॉ. किरणमाली उसी रात डॉ. विवस्वान के निवासस्थान पहुंचे। डॉ. विवस्वान की प्रयोगशाला  में उनका पार्थिव शरीर ले जाया गया। सुपर कंप्यूटर तथा अन्य उपकरण चालू कर दिये गये। डॉ. विवस्वान के मस्तिष्क के क्रियाकलापों का आरेख होलोग्राम के परदे पर चित्रित हो रहा था, डॉ. मार्तंड तथा डॉ. किरणमाली ई. ई. जी. के परदे पर साफ़ साफ़ देख रहे थे की किस प्रकार मस्तिष्क की कोशिकाएं तेजी से मृत हो रही है। कोशिकाओं का क्रियाकलाप तेजी से बंद होता जा रहा था। डॉ मार्तंड के दक्ष हाथ नैनो टेक्नोलॉजी के सूक्ष्म उपकरणों द्वारा डॉ. विवस्वान के मस्तिष्क के एक विशिष्ट अणु को पृथक करने में कार्यरत हो गये। यह विशिष्ट अणु था डी. एन. ए... एक स्मृति अणु... विलक्षण अणु ...

नैनो टेक्नोलॉजी का ही कमल था कि वे डॉ. विवस्वान के मस्तिष्क के अणु को पृथक कर पाये। नैनो टेक्नोलॉजी अणु के स्तर पर कार्य करती है। इस विलक्षण अणु को डॉ. किरणमाली ने पास ही टेबल पर लेटे हुए एक चार साल के बच्चे में प्रत्यारोपित कर दिया। इस बच्चे कि व्यवस्था उन्होंने कैसे की, यह तो वे दोनों ही जानते थे लेकिन यह कार्य भी अत्यन्त गुप्त था। बच्चे को उसके माता -पिता को पुनः सौंप दिया गया। वे उसे अपने कस्बे में ले गये।
इस ऑपरेशन की सफलता से डॉ. मार्तंड तथा डॉ. किरणमाली दोनों के चेहरे पर मुस्कराहट खिल आई। ऑपरेशन पुनर्जन्म सफल हो चुका था। यह एक हैरतअंगेज कारनामा था ... । महान वैज्ञानिक डॉ. विवस्वान भले ही इस दुनिया में नहीं रहे हों लेकिन उनकी स्मृति दूर किसी बालक में संचित थी। किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई की दुनिया में एक हैरतअंगेज कारनामा हो गया और वह भी डॉ. मार्तंड तथा डॉ. किरणमाली के हाथों।

लेकिन तभी बच्चे के पुनर्जन्म की घटना चारोंओर फ़ैल गयी। लोगों ने इसे सामान्य पुनर्जन्म ही समझा। पुनर्जन्म की इस घटना का समाचार डॉ. मार्तंड के पास भी पहुंचा। दूर दूर से लोग बच्चे से मिलने उसके कस्बे में आ रहे थे। अनेक परामनोवैज्ञानिक भी वहां पहुंचे। डॉ. मार्तंड  मन ही मन मुस्करा रहे थे। वे जानते थे कि वह कोई पुनर्जन्म नहीं था बल्कि किया गया था।

डॉ. मार्तंड भी अपनी सौर कार से चल पड़े। उनकी सौर कार अब छोटे से कस्बे कि ओर बढ़ रही थी। जब वे कस्बे के निकट पहुंचे तो उन्होंने पाया कि हर किसी कि जुबान पर बच्चे के पुनर्जन्म कि घटना कि चर्चा थी। चाय की दुकान,रेस्तरां बाज़ार, घर- घर, गली- गली सभी जगह। समाचार पत्र की सुर्खियों तथा चेनलों तथा इन्टरनेट ने तो पूरे विश्व भर में इसे चर्चा का विषय बना दिया था। जब डॉ. मार्तंड बच्चे के निवास स्थल पहुंचे तो वहां दूर दूर से आने वालों का ताँता लगा हुआ था। इसके अतिरिक्त विश्व भर के परामनोवैज्ञानिकों का जमघट लगा हुआ था

बच्चे का नाम सचिन था। उसका जन्म एक गरीब कृषक परिवार में हुआ था। पिता खेती- बाड़ी करते थे। सचिन एक प्राथमिक शाला में पढता था। लेकिन मंद बुद्धि बालक था। एक दिन क्रिकेट खेलते हुए अचानक उसे गहरी चोट लगी। असहाय माता पिता सचिन को लेकर अस्पताल पहुंचे जहाँ चिकित्सकों ने उसे डॉ. मार्तंड तथा डॉ. किरणमाली के हवाले कर दिया।

लेकिन अब एक करिश्मा हो गया। जबसे वह अस्पताल से आया स्कूल में वह एक होनहार छात्र की तरह व्यवहार करने लगा। कहाँ उसे अंग्रेजी के शब्दों में भी कठिनाई होती थी। कहाँ अब वह पूरा का पूरा अध्याय एक बार पढ़कर बिना देखे ज्यों का त्यों दोहरा देता था। कक्षा में गणित के सवाल उसे अब बचकाने लगते। विज्ञान के अध्यायों को तो वह बदलने की सलाह देता। अध्यापकों से वह एक होनहार छात्र की तरह व्यवहार करता । अध्यापक उसकी विलक्षण प्रतिभा के आगे नत- मस्तक थे।

वह छोटी सी उम्र में ही पुस्तकालय में रखे हुए वृहत विश्वकोश पढने लगा था। अध्यापकों से वह वैज्ञानिक प्रयोगों से सम्बंधित पुस्तके बताने के लिये कहता। पूरे कस्बे में उसके विलक्षण व्यवहार की चर्चा थी और जिस बात ने उसे देश के कोने कोने में यहाँ तक कि विदेशों में भी चर्चा का विषय बना दिया था , वह यह थी कि वह स्वयं को डॉ. विवस्वान कहता था। वह अपने माता माता पिता से डॉ विवस्वान के निवास स्थल ले चलने कीजिद करने लगा। उसने अपने पिता को वैज्ञानिक विवस्वान के निवास स्थल का पूरा नक्शा समझाया। उसने डॉ विवस्वान की प्रयोगशाला का हूबहू वर्णन किया। उसने बताया कि उनकी प्रयोगशाला में किस किस तरह के उपकरण कहाँ कहाँ स्थित है। उसने कुछ ऐसी कागचों तथा फाइलों का भी जिक्र किया जिसे केवल विवस्वान ही जानते थे।

सचिन अपने कृषक माता पिता को माता पिता मानने को तैयार नहीं था। वह तो केवल डॉ. विवस्वान के माता पिता को ही अपने माता पिता समझता था। उसने बताया कि उसके एक पत्नी ओर दो बच्चियां है। बड़ी बच्ची न्यूयॉर्क में अध्ययन कर रही है। तथा छोटी बच्ची रूस में अन्तरिक्ष पायलेट की ट्रेनिंग ले रही है उसका इरादा भारत आने पर शटल उडाने का है। वह अन्तरिक्ष स्टेशन से शटल को मंगल तथा अन्य ग्रहों पर ले जाना चाहती है। अब भी ये यात्राएं जोखिम भरी थी। सचिन ने बताया कि दूर होते हुए भी वह अपने माता पिता से बराबर सम्पर्क रखतीथी कितना चाहती थी वह अपने पापा को यानी डॉ. विवस्वान को। उसने विवस्वान की पत्नी तथा बच्चों के साथ घटित कई संस्मरण सुनाये जो केवल डॉ. विवस्वान को ही ज्ञात थे। सचिन ने बताया की डॉ विवस्वान एक अत्याधुनिक कंप्यूटर कार'नोवेट' चलाते थे। उसे विवस्वान के निवासस्थल के तथा कार के नंबर भी ज्ञात थे। उसने डॉ विवस्वान ने जिस कुत्ते को पाल रखा था, उसका नाम, उसकी किस्म तथा उसके व्यवहार का भी जिक्र किया।

सचिन ने बताया कि वह कभी भी क़स्बा छोड़ कार बाहर नहीं गया। न ही उस छोटे से कस्बे में उसे कोई जनता था। घटना  के कुछ दिनों बाद जब डॉ. विवस्वान कि पत्नी को वहां लाया गया तो घर के बाहर आम जनता की भीड़ उमड़ी हुई थी कई समाचार पत्रों के संपादक तथा परामनोवैज्ञानिक वहां उपस्थित थे। सचिन अपनी पत्नी को देखते ही पहचान गया। कि वह उसी की पत्नी है। उसने कई ऐसी अन्तरंग बातें बताई जिनसे डॉ विवस्वान की पत्नी को यह स्वीकार करना पड़ा कि बालक ठीक कह रहा है।

सचिन डॉ विवस्वान कीपत्नी से उसके घर ले चलने की जिद करने लगा। परावैज्ञानिकों को यह पूरा विश्वास हो गया कि बालक का पुनर्जन्म हुआ है।
डॉ. मार्तंड ने सचिन से काफी देर तक बातचीत की। उन्हें भी पूरी तरह विश्वास हो गया था कि बालक का पुनर्जन्म हुआ है। लेकिन यह प्राकृतिक पुनर्जन्म नहीं था। यह तो डॉ. किरणमाली तथा उनके प्रयासों का सुफ़ल था। 'ऑपरेशन पुनर्जन्म' सफल हो चुका था।

लेकिन उन्होंने किसी से भी इसकी चर्चा नहीं की।

सचिन उन्हें डॉ. विवस्वान के घर ले चलने की जिद जरने लगा। सचिन के माँ बाप के लिये अब सचिन की कोई उपयोगिता नहीं रही थी। सचिन हाड़ -मांस का तो वही था लेकिन वह दिमागी तौर पर एक विचित्र व्यक्तित्व अख्त्यार कर चुकाथा। उधर  डॉ. विवस्वान की पत्नी भी उसे अपनाने से इंकार कर रही थी। डॉ. मार्तंड ने ऐसी परिस्थिति में सचिन के कृषक माता पिता से अनुनय -विनय कर वह बालक प्राप्त कर लिया। अब डॉ. किरणमाली तथा डॉ. मार्तंड के सानिध्य में बालक बड़ा होने लगा। वह अब किसी विवस्वान से कम नहीं था। वह डॉ. विवस्वान बन चुका था। वह दिनरात अपनी प्रयोगशाला में अधूरी खोज को पूरा करने में जुट गया। और फिर वह दिन भी आया जब इस दूसरे विवस्वान ने जरावस्था पर विजय पाई। सारी दुनिया में आश्चर्य की लहर दौड़ गई। इस हैरतअंगेज कारनामे की चर्चा कभी ख़त्म होने का नाम नहीं लेती। धरती माँ भी यह सोच -सोच कर मुस्करा रही थी की अब उसकी खूबसूरती में चार चाँद लग जायेंगे क्योंकि अब धरती पर कोई और वृद्ध नहीं होगा।

-- हरीश गोयल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें