विज्ञान और पुनर्जन्म
पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है।
पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता।चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है।
पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मुति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्थ्सा में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गाॅस तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारत हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे।
प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना ओर अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है?
डाॅ. स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिन्ह मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिन्हों का पुनःप्रकटन आज भी एक पहेली है।
डाॅ. हेमेन्द्र नाथ बनर्जी का कथन है कि कभी-कभी वर्तमान की बीमारी का कारण पिछले जन्म में भी हो सकता है। श्रीमती रोजन वर्ग की चिकित्सा इसी तरह हुई। आग को देखते ही थर-थर कांप जाने वाली उक्त महिला का जब कोई भी डाॅक्टर इलाज नहीं कर सका। तब थककर वे मनोचिकित्सक के पास गई। वहां जब उन्हें सम्मोहित कर पूर्वभव की याद कराई कई, तो रोजन वर्ग ने बताया कि वे पिछले जन्म में जल कर मर गई थीं। अतः उन्हें उसका अनुभव करा कर समझा दिया गया, तो वे बिल्कुल स्वस्थ हो गई। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने विल्सन कलाउड चेम्बर परीक्षण में चूहे की आत्मा की तस्वीर तक खींची है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि मृत्यु पर चेतना का शरीर से निर्गमन हो जाता है?
सम्पूर्ण विश्व के सभी धर्मो, वर्गों, जातियों एवं समाजों में पुनर्जन्म के सिद्धांतों किसी न किसी रुप में मान्यता प्राप्त है।
अंततः इस कम्प्युटर युग में भी यह स्पष्ट है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत विज्ञान सम्मत है। आधुनिक तकनीकी शब्दावली में पुनर्जन्म के सिद्धांत को इस तरह समझ सकते हैं। आत्मा का अदृश्य कम्प्युटर है और शरीर एक रोबोट है। हम कर्मों के माध्यम से कम्प्युटर में जैसा प्रोग्राम फीड करते हैं वैसा ही फल पाते हैं। कम्प्युटर पुराना रोबोट खराब को जाने पर अपने कर्मों के हिसाब से नया रोबोट बना लेता है।
पुनर्जन्म के विपक्ष में भी अनेक तर्क एवं प्रक्ष खड़े हैं। यह पहेली शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है। जीवन के प्रति समग्र सजगता एवं अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। संस्कारों की नदी में बढ़ने वाला मन इसे नहीं समझ सकता है।
पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है।
पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता।चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है।
पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मुति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्थ्सा में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गाॅस तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारत हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे।
प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना ओर अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है?
डाॅ. स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिन्ह मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिन्हों का पुनःप्रकटन आज भी एक पहेली है।
डाॅ. हेमेन्द्र नाथ बनर्जी का कथन है कि कभी-कभी वर्तमान की बीमारी का कारण पिछले जन्म में भी हो सकता है। श्रीमती रोजन वर्ग की चिकित्सा इसी तरह हुई। आग को देखते ही थर-थर कांप जाने वाली उक्त महिला का जब कोई भी डाॅक्टर इलाज नहीं कर सका। तब थककर वे मनोचिकित्सक के पास गई। वहां जब उन्हें सम्मोहित कर पूर्वभव की याद कराई कई, तो रोजन वर्ग ने बताया कि वे पिछले जन्म में जल कर मर गई थीं। अतः उन्हें उसका अनुभव करा कर समझा दिया गया, तो वे बिल्कुल स्वस्थ हो गई। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने विल्सन कलाउड चेम्बर परीक्षण में चूहे की आत्मा की तस्वीर तक खींची है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि मृत्यु पर चेतना का शरीर से निर्गमन हो जाता है?
सम्पूर्ण विश्व के सभी धर्मो, वर्गों, जातियों एवं समाजों में पुनर्जन्म के सिद्धांतों किसी न किसी रुप में मान्यता प्राप्त है।
अंततः इस कम्प्युटर युग में भी यह स्पष्ट है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत विज्ञान सम्मत है। आधुनिक तकनीकी शब्दावली में पुनर्जन्म के सिद्धांत को इस तरह समझ सकते हैं। आत्मा का अदृश्य कम्प्युटर है और शरीर एक रोबोट है। हम कर्मों के माध्यम से कम्प्युटर में जैसा प्रोग्राम फीड करते हैं वैसा ही फल पाते हैं। कम्प्युटर पुराना रोबोट खराब को जाने पर अपने कर्मों के हिसाब से नया रोबोट बना लेता है।
पुनर्जन्म के विपक्ष में भी अनेक तर्क एवं प्रक्ष खड़े हैं। यह पहेली शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है। जीवन के प्रति समग्र सजगता एवं अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। संस्कारों की नदी में बढ़ने वाला मन इसे नहीं समझ सकता है।
पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता।चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है।
पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मुति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्थ्सा में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गाॅस तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारत हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे।
प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना ओर अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है?
डाॅ. स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिन्ह मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिन्हों का पुनःप्रकटन आज भी एक पहेली है।
डाॅ. हेमेन्द्र नाथ बनर्जी का कथन है कि कभी-कभी वर्तमान की बीमारी का कारण पिछले जन्म में भी हो सकता है। श्रीमती रोजन वर्ग की चिकित्सा इसी तरह हुई। आग को देखते ही थर-थर कांप जाने वाली उक्त महिला का जब कोई भी डाॅक्टर इलाज नहीं कर सका। तब थककर वे मनोचिकित्सक के पास गई। वहां जब उन्हें सम्मोहित कर पूर्वभव की याद कराई कई, तो रोजन वर्ग ने बताया कि वे पिछले जन्म में जल कर मर गई थीं। अतः उन्हें उसका अनुभव करा कर समझा दिया गया, तो वे बिल्कुल स्वस्थ हो गई। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने विल्सन कलाउड चेम्बर परीक्षण में चूहे की आत्मा की तस्वीर तक खींची है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि मृत्यु पर चेतना का शरीर से निर्गमन हो जाता है?
सम्पूर्ण विश्व के सभी धर्मो, वर्गों, जातियों एवं समाजों में पुनर्जन्म के सिद्धांतों किसी न किसी रुप में मान्यता प्राप्त है।
अंततः इस कम्प्युटर युग में भी यह स्पष्ट है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत विज्ञान सम्मत है। आधुनिक तकनीकी शब्दावली में पुनर्जन्म के सिद्धांत को इस तरह समझ सकते हैं। आत्मा का अदृश्य कम्प्युटर है और शरीर एक रोबोट है। हम कर्मों के माध्यम से कम्प्युटर में जैसा प्रोग्राम फीड करते हैं वैसा ही फल पाते हैं। कम्प्युटर पुराना रोबोट खराब को जाने पर अपने कर्मों के हिसाब से नया रोबोट बना लेता है।
पुनर्जन्म के विपक्ष में भी अनेक तर्क एवं प्रक्ष खड़े हैं। यह पहेली शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है। जीवन के प्रति समग्र सजगता एवं अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। संस्कारों की नदी में बढ़ने वाला मन इसे नहीं समझ सकता है।
Ya sab ghoth hai qki ajse 50 sal pahle kine aadmi the ab kitne aadmi hai jab oisa hai to a aadmi bdhte kaha se hai... Hai koi jwab dene wala
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